Prachin Bharat Ka Mudrashastriye Itihaas
Author(s) | Anup Kumar |
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Pages | 172 |
ISBN | 9788191038262 |
Lang. | Hindi |
Format | Hardbound |
₹425.00
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Description
प्राचीन भारत में मुद्रा का उद्भव, उसकी प्राचीनता और उसके विकास का इतिहास जैसी विषय ही विद्वानों के चिंतन के मुख्य विषय रहे हैं! राजनैतिक, आर्थिक, तथा धार्मिक इतिहास के निर्माण में सिक्कों से प्राप्त सूचनाओं के उपयोग पर बहुत काम हुए हैं, लेकिन भारतीय सिक्कों के निर्माण एवं उनकी परम्पराओं तथा प्राचीन भारत में प्रचलित मौद्रिक विनिमय प्रणालियों में देशी एवं विदेशी तत्त्वों की भूमिकाओं का समुचित अध्ययन अभी तक नहीं किया गया है! इसके अतिरिक्त मुद्रा निर्माण के क्षेत्र में आने वाले प्राचीन भारतीय उतार – चढ़ावों में किस सिमा तक विदेशी प्रेरणायें कार्यरत थीं, आदि विषयों पर भी क्रमबद्ध विवेचन नहीं हुए हैं! इस छोटे से कलेवर में भारतीय मुद्रा के इतिहास में देशी एवं विदेशी तत्त्वों के बीच होने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया का महत्वपूर्ण विश्लेषण करके उपर्युक्त कमियों को दूर करने से प्रयास किया गया है! इसी क्रम में भारतीय एवं विदेशी परम्पराओं का सामंजस्य भी देखने को मिलता है जिसके कई उदहारण हैं, जैसे हिन्द-यवनों द्वारा यूनानी लिपि के साथ-साथ खरोष्ठी लिपि का सिक्कों के पृष्ठभाग पर प्रयोग किया जाना और इस परंपरा का शंकों, पहलवों एवं प्रारंभिक कुषाणों द्वारा अपनाया जाना! कुषाणों के सिक्कों पर हिन्दू, बौद्ध, पारसी तथा यूनानी एवं रोमन देवी-देवताओं के चित्रण भी प्राप्त होते हैं! हिन्द-यवन शासक अगाथोक्लीज़ के सिक्कों पर वासुदेव का चित्रण मिलता है! विदेशी परम्पराओं को अपनाते हुए कौशाम्बी, मथुरा, अहिछत्र, के नरेशों ने आहत सिक्कों के प्रतिक चिह्नों के साथ अपने नाम अंकित कराये हैं और पृष्ठभाग पर अपने नाम के अंगभूत हिन्दू देवताओं के चित्रण भी करवाए हैं! इस प्रकार भारतीय मुद्रा प्रणाली में देशी-विदेशी तत्त्वों की क्रिया-प्रतिक्रिया इस पुस्तक का लक्ष्य हैं! भारतीय मुद्रशास्त्रीय इतिहास के विद्वानों एवं पाठकों के लिए इस शोध की विशेष उपादेयता है!
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जनपद के मूल निवासी डॉ. अनूप कुमार ने इलहाबाद विश्विद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग से सन 1996 में स्नातकोत्तर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की! सन 2000 में इंडियन कौंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली, ने डॉ. कुमार को जूनियर रिसर्च फेलो के रूप में चयनित किया! सन 2006 में उन्हें इलहाबाद विश्विद्यालय ने डी.फिल. की उपाधि प्रदान की!
डॉ. कुमार का भारतीय सामाजिक – आर्थिक इतिहास में अध्ययन एवं अनुसन्धान कार्य के प्रति विशेष झुकाव रहा! देश में आयोजित विभिन्न संघठियों में आपके शोधग्रंथों का स्वागत किया गया! विभिन्न संस्थाओं से प्रकाशित होने वाले शोधग्रंथों एवं शोधपत्रिकाओं में कई शोधपत्रों का प्रकाशन हो चूका है! वर्तमान में डॉ. कुमार फ़ज़्लुर्रहमान खां एडवांस्ड रिसर्च सेन्टर, शाहजहांपुर की शोध पत्रिका ‘जर्नल ऑफ सोशल साइंस एंड हमनिटीज़’ के सम्पादक हैं! इसी सेंटर से निकलने वाली, सार्थक हस्तक्षेप और रचनात्मक परिवर्तन का लक्ष्य रखने वाली मासिक पत्रिका ‘चरखा’ के सम्पादन से भी सम्बद्ध हैं! गाँधी फैज़-ए-आम कॉलेज, शाहजहांपुर के पी.जी. डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री में आपका अध्यापन यूरोप का इतिहास 1453 -1945 ‘ नमक पुस्तक प्रकाशित हुई है!
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