Aarthik Sanrachna Aur Dharm

Author(s)
Pages   320
ISBN
Lang.   Hindi
Format   Hardbound
Category:

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Description

सामान्य जन-जीवन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं के सर्वांगीण विकासक्रम का निरूपण बृहत्तर भौतिक पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में करने की आवश्यकता, और शायद अपरिहार्यता के एहसास का प्रतिफल है यह कृति |

लगभग चार शताब्दियों (सा.यु.पू. लगभग 700-300) के काल के दौरान जन-जीवन के सभी पक्षों का निरूपण करने वाली यह रचना कुछ नई शब्दावलियों की ओर इशारा कराती है | इस काल से सम्बंधित दीर्घ शताब्दी  और कुछ अन्य बड़े मुद्दों की विस्तृत चर्चा की गई है | इसके अतिरिक्त इस संपूर्ण काल को वैदिकोत्तर काल कहा गया है, जिसे उत्तर वैदिक काल (सामान्यतया सर्का 1000 – सर्का 500 बी.सी.) से भिन्न समझना चाहिए | मौजूदा परिपाटी से हटकर इसमें संस्कृत, पालि और प्राकृत में उपलब्ध ब्राह्मणीय, बौद्ध और जैन साहित्य को ‘पवित्र’ एवं ‘धर्मं ग्रंथों’ ( ‘Sacred’ and ‘Scriptures’) वाली श्रेणियों में रखने की प्रवृत्ति का विरोध किया गया है | अक्सर पालि और प्राकृत नामों और शब्दों का संस्कृत-करण कर दिया जाता है| यहां इस प्रवृत्ति को भी नकारते हुए इन सभी साहित्यिक कृतियों की मूल भाषाई शब्दावली का ही प्रयोग किया गया है | सामान्य रूप से प्रयुक्त होने वाले B.C और A.D के स्थान पर अब अधिक प्रचलित होते हुए यहाँ क्रमशः सा.यु.पू.(BCE) और वर्त्तमान/सामान्य युगीन (CE) का इस्तेमाल किया गया है| यह नई शब्दावली काल गणना में ईसा मसीह और इसाईयत के प्रभाव को नगण्य बनाती है |

इस अध्ययन काल के दौरान प्राचीन भारतीय धर्मों के इतिहास में बुद्ध, महावीर व उनके जैसे अनेकानेक धार्मिक चिंतकों के क्रांतिकारी विचारों के कारण इस काल को  भारत का विवेक युग कहा जा सकता है | किन्तु यह धार्मिक और वैचारिक क्रांति कोई एकाकी विकासक्रम न था | सामान्य जन-जीवन के सभी पक्षों में दूरगामी परिवर्तन हो रहे थे| आर्थिक परिदृश्य विशेष रूप से नई दिशाओं में अग्रसर हो रहा था | धात्विक मुद्रा-व्यवस्था, लौह तकनीक का विशाल भौगोलिक क्षेत्र में प्रसार, और बढ़ते व्यापार तंत्र ने नागरीकरण को तो बल प्रदान किया ही, परन्तु साथ-साथ ग्रामीण वातावरण और कृषकों की उत्पादन क्षमताओं को भी असीम रूप से प्रभावित किया | इस बदलते भौतिक माहौल ने समाज की वर्ण और जातिगत विषमताओं और परिवर्तनशीलता को नई गति प्रदान की | यह कृति भारतीय इतिहास की इन चार महत्वपूर्ण शताब्दियों का सर्वांगीण मूल्यांकन है, जिसमें पाठकों को इस काल से सम्बंधित पाठों/स्रोतों से विस्तृत रूप में अवगत कराने का प्रयास भी किया गया है |

भारत के विवेक युग की इस संरचना में सात मानचित्रों के अलावा छब्बीस फलकों और रेखाचित्रों को भी शामिल किया गया है |

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